थोड़ा सा रूमानी हो जाएँ

'थोड़ा सा रूमानी हो जाएँ' याद है? अमोल पालेकर द्वारा निर्देशित सपनों और हकीकत की यह लिरिकल दास्तान पहली बार दूरदर्शन पर बहुत पहले देखी थी. हॉलीवुड म्यूजिकल के अंदाज़ में बनाई गयी यह अनूठी फ़िल्म मन के किसी कोने में धँस गयी. अभी दो-तीन सालों पहले अपने जर्सी सिटी वाले गुजराती भाई की वीडियो लाइब्रेरी से लाकर यह फ़िल्म फिर देखी. और चार-छः महीनों पहले यूट्यूब के सौजन्य से टुकडों-टुकडों में देखी.

भयंकर गर्मी से झुलसा हुआ बारिश के लिए तरसता मध्य भारत का एक पहाड़ी क़स्बा, एक 'ज़रा-हटके' या पारम्परिक सन्दर्भों में अति-साधारण लड़की जो शादी की उम्र पार करने को है, एक सम्वेदनशील मगर चिन्तित पिता, एक बिलकुल 'बड़े भैया टाइप' बड़े भैया, एक जवान होता छोटा लड़का जिसे बड़े भैया बच्चा ही मानते हैं. फिर एंट्री होती है 'धृष्टधुम्न पद्मनाभ प्रजापति नीलकंठ धूमकेतु बारिशकर' की. यह बड़बोला ठग उनके घर में घुस आता है और पाँच हज़ार रुपयों के बदले मात्र 48 घंटों में बारिश करवाने की गारण्टी देता है. बड़े भैया और बिन्नी उसे झूठा और मक्कार कहते हैं मगर पापा और छोटा बेटा मानते हैं कि ट्राई करने में क्या हर्ज़ है. और उस एक गर्मी की रात में बारिशकर बिन्नी को उसके अन्दर की सुन्दरता से परिचित करवाता है, उसे अपने सपनों में विश्वास करना सिखाता है. जवान होते लड़के में वह इतना आत्म-विश्वास भर देता है कि ज़रुरत पड़ने पर बड़े भैया को घूँसा भी मार सके.

फ़िल्म के बिलकुल असली लगने वाले पात्र ,काव्यमय संवाद और छोटे-छोटे मधुर गीत इसे अद्भुत 'फेअरी टेल' का रूप देते हैं.'पोएट्री इन मोशन' शायद इसे ही कहते होंगे. फ़िल्म के अंत में बड़ी साफगोई से अमोल पालेकर ने यह बता दिया कि इस फिल्म की कथा अंग्रेजी फिल्म/नाटक ' दि रेनमेकर' से ली गयी है.
इसीलिए बड़े दिनों से 'दि रेनमेकर' देखने का मन था; कल रात वो भी देख ली. 1956 में बनी, जोसफ अन्थोनी द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभाई है केथरीन हेपबर्न और बर्ट लैन्कस्टर. यह फ़िल्म भी अच्छी लगी, विशेषकर केथरीन हेपबर्न का शानदार अभिनय. वैसे अपने देसी संस्करण में अनीता कँवर ने बहुत अच्छा अभिनय किया है, परन्तु हिन्दी उच्चारण की त्रुटियों को नज़र अंदाज़ कर दिया जाए तो यह फिल्म नाना पाटेकर की है. एक लवेबल लम्पट की भूमिका उन्होंने बड़ी शिद्दत के साथ निभाई है. मगर 'फेअरी टेल' शायद अपनी भाषा में ज्यादा मोहक लगती है. यह अंग्रेजी फ़िल्म देखकर फिर एक बार अमोल पालेकर को सैल्यूट करने का मन हुआ. लगा कि हॉलीवुड फ़िल्मों की कॉपी करने की अमोल पालेकर जैसी कला (और ईमानदारी भी) अन्य निर्देशकों में भी आ जाये.
हिन्दी फ़िल्म का टाइटल गीत बहुत मधुर है और बोल भी उतने ही आकर्षक है. यूट्यूब पर बानगी देखिये (वीडियो में तस्वीर शायद इसे अपलोड करने वाले सज्जन की ही है). वैसे तो पूरी फिल्म ही यूट्यूब पर उपलब्ध है.

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