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Showing posts from March, 2009

जॉन होप फ्रैंकलिन का निधन

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गत 25 मार्च को अमरीकी इतिहासकार जॉन होप फ्रैंकलिन का 94 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. अमेरिकी इतिहास में अश्वेतों को उनका उचित स्थान दिलाने में फ्रैंकलिन का महती योगदान है. नस्लवादी पूर्वाग्रह से ग्रस्त अमेरिका के दक्षिणी राज्य ओक्लाहोमा में पैदा हुए फ्रैंकलिन ने अश्वेतों के प्रति होने वाले भेद-भाव और दुर्व्यवहार को स्वयं अनुभव किया था. ऐसा ही एक कटु अनुभव उस समय का है जब बचपन में उन्होंने एक नेत्रहीन महिला को सड़क पार करने में मदद करने की कोशिश की. जब उन्होंने यह बताया कि वे अश्वेत हैं तो उस महिला ने घृणा से उनका हाथ झटक दिया. अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में वह जिम क्रो कानूनों का दौर था.  जिम क्रो कानूनों के अनुसार सरकारी स्कूलों, सार्वजनिक शौचालयों, बसों, ट्रेनों, रेस्तराँ और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर श्वेत और अश्वेत लोगों के लिए अलग व्यवस्था थी. ये कानून कहने को तो अश्वेतों को 'पृथक मगर बराबर' (सेपरेट बट ईक्वल) दर्जा देते थे मगर मूलतः ये नस्लवादी मानसिकता का प्रतीक थे.  'ब्राउन विरुद्ध बोर्ड ऑफ़ एजूकेशन' केस को बीसवीं सदी के अमेरिकी इतिहास में मील का पत्थर माना जाता ह

सेसर शावेज़ की याद में

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  31 मार्च सेसर शावेज़ का जन्मदिन है. मेक्सिकन मूल के इस अमेरिकी मजदूर नेता  ने उचित मजदूरी  और काम की  परिस्थितियों में सुधार के लिए खेतिहर श्रमिकों को संगठित किया.महात्मा गाँधी से गहरे प्रभावित शावेज़ ने 1962 में नेशनल फार्म वर्कर्स असोसिएशन की स्थापना की जिसका नाम बाद में बदल कर यूनाईटेड फार्म वर्कर्स कर दिया गया. आज यूनाईटेड फार्म वर्कर्स अमेरिका में खेतिहर मजदूरों की अग्रणी यूनियन है. शावेज़ की अगुवाई में यूनाईटेड फार्म वर्कर्स ने खेतिहर मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिए कई आन्दोलन चलाये. इस महान नेता के सम्मान में उनके जन्म-दिन पर अमरीका के आठ राज्यों में अवकाश होता है. यूनाईटेड फार्म वर्कर्स ने 31 मार्च को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की मांग की है.  इस मांग के समर्थन के लिए अमेरिकी जनता के बीच हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है. http://www.ufwaction.org/campaign/chavezholiday09

वो जो नहीं है किसी जैसा

फ़रोग फरोखज़ाद की कविताएँ शिरीष जी ने पिछले हफ़्ते अनुनाद पर पोस्ट की थीं. आज शहीदों को याद करते हुए उनकी एक और कविता (मूल फ़ारसी के माइकल सी. हिलमन द्वारा किये गए अंग्रेजी अनुवाद से अनूदित) प्रस्तुत है. वो जो नहीं है किसी जैसा मैंने एक ख़्वाब देखा कि कोई आ रहा है. मैंने एक लाल सितारे को ख़्वाब में देखा, और मेरी पलकें झपकने लगती हैं मेरे जूते तड़कने लगते हैं अगर मैं झूठ बोल रही हूँ तो अन्धी हो जाऊँ. मैंने तब उस लाल सितारे का ख़्वाब देखा जब मैं नींद में नहीं थी, कोई आ रहा है, कोई आ रहा है, कोई बेहतर. कोई आ रहा है, कोई आ रहा है, वो जो अपने दिल में हम जैसा है, अपनी साँसों में हम जैसा है, अपनी आवाज़ में हम जैसा है, वो जो आ रहा है जिसे रोका नहीं जा सकता हथकड़ियाँ बाँध कर जेल में नहीं फेंका जा सकता वो जो पैदा हो चूका है याह्या के पुराने कपडों के नीचे, और दिन ब दिन होता जाता है बड़ा, और बड़ा, वो जो बारिश से, वो जो बून्दों के टपकने की आवाज़ से , वो जो फूलों के डालियों की फुसफुसाहट में, जो आसमान से आ रहा है आतिशबाज़ी की रात मैदान-ए-तूपखाने में दस्तर-ख्वान बिछाने रोटियों के हिस्से करने पेप्सी बाँटने बा

थोड़ा सा रूमानी हो जाएँ

'थोड़ा सा रूमानी हो जाएँ' याद है? अमोल पालेकर द्वारा निर्देशित सपनों और हकीकत की यह लिरिकल दास्तान पहली बार दूरदर्शन पर बहुत पहले देखी थी. हॉलीवुड म्यूजिकल के अंदाज़ में बनाई गयी यह अनूठी फ़िल्म मन के किसी कोने में धँस गयी. अभी दो-तीन सालों पहले अपने जर्सी सिटी वाले गुजराती भाई की वीडियो लाइब्रेरी से लाकर यह फ़िल्म फिर देखी. और चार-छः महीनों पहले यूट्यूब के सौजन्य से टुकडों-टुकडों में देखी. भयंकर गर्मी से झुलसा हुआ बारिश के लिए तरसता मध्य भारत का एक पहाड़ी क़स्बा, एक 'ज़रा-हटके' या पारम्परिक सन्दर्भों में अति-साधारण लड़की जो शादी की उम्र पार करने को है, एक सम्वेदनशील मगर चिन्तित पिता, एक बिलकुल 'बड़े भैया टाइप' बड़े भैया, एक जवान होता छोटा लड़का जिसे बड़े भैया बच्चा ही मानते हैं. फिर एंट्री होती है 'धृष्टधुम्न पद्मनाभ प्रजापति नीलकंठ धूमकेतु बारिशकर' की. यह बड़बोला ठग उनके घर में घुस आता है और पाँच हज़ार रुपयों के बदले मात्र 48 घंटों में बारिश करवाने की गारण्टी देता है. बड़े भैया और बिन्नी उसे झूठा और मक्कार कहते हैं मगर पापा और छोटा बेटा मानते हैं कि ट्राई कर