वो जो नहीं है किसी जैसा

फ़रोग फरोखज़ाद की कविताएँ शिरीष जी ने पिछले हफ़्ते अनुनाद पर पोस्ट की थीं. आज शहीदों को याद करते हुए उनकी एक और कविता (मूल फ़ारसी के माइकल सी. हिलमन द्वारा किये गए अंग्रेजी अनुवाद से अनूदित) प्रस्तुत है.

वो जो नहीं है किसी जैसा

मैंने एक ख़्वाब देखा कि कोई आ रहा है.
मैंने एक लाल सितारे को ख़्वाब में देखा,
और मेरी पलकें झपकने लगती हैं
मेरे जूते तड़कने लगते हैं
अगर मैं झूठ बोल रही हूँ
तो अन्धी हो जाऊँ.
मैंने तब उस लाल सितारे का ख़्वाब देखा
जब मैं नींद में नहीं थी,
कोई आ रहा है,
कोई आ रहा है,
कोई बेहतर.

कोई आ रहा है,
कोई आ रहा है,
वो जो अपने दिल में हम जैसा है,
अपनी साँसों में हम जैसा है,
अपनी आवाज़ में हम जैसा है,
वो जो आ रहा है
जिसे रोका नहीं जा सकता
हथकड़ियाँ बाँध कर जेल में नहीं फेंका जा सकता
वो जो पैदा हो चूका है
याह्या के पुराने कपडों के नीचे,
और दिन ब दिन
होता जाता है बड़ा, और बड़ा,
वो जो बारिश से,
वो जो बून्दों के टपकने की आवाज़ से ,
वो जो फूलों के डालियों की फुसफुसाहट में,
जो आसमान से आ रहा है
आतिशबाज़ी की रात मैदान-ए-तूपखाने में
दस्तर-ख्वान बिछाने
रोटियों के हिस्से करने
पेप्सी बाँटने
बाग़-ए-मेली के हिस्से करने
काली खाँसी की दवाई बाँटने
नामज़दगी के दिन पर्चियाँ बाँटने
सभी को अस्पताल के प्रतीक्षालयों के कमरे बाँटने
रबड़ के जूते बाँटने
फरदीन सिनेमा के टिकट बाँटने
सय्यद जवाद की बिटिया के कपड़े देने
देने वह सब जो बिकता नहीं
और हमें हमारा हिस्सा तक देने.
मैंने एक ख़्वाब देखा.

Comments

Popular posts from this blog

जॉन होप फ्रैंकलिन का निधन

लिट्ल मोर आडॅसिटी

अब्राहम लिंकन के बहाने अशोकन फेयरवेल